सीकर जिले में कृषि भूमि उपयोग के स्वरूप में बदलावों का अध्ययन
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Published on: Dec 31, 2023
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DOI: CIJE202384879-80
Arvind Kumar Morya
शोधार्थी, भूगोल विभाग, ओ पी जे एस विश्वविधालय, चुरू, Email: hnmourya01@gmail.com, Mobile: 9214981782
Author/Co-Author 1
डॉ चंद्रभान सिंह, सह आचार्य भूगोल विभाग, ओ पी जे एस विश्वविधालय, चुरू
आदिकाल से ही कृषि मानव का प्रमुख व्यवसाय रहा है। मानव अपनी सभ्यता के विकास के साथ-साथ अपने अनुभवां एवं नवसृजित तकनीकों व प्रौधोगिकी के प्रयोग से कृषि के प्रकार, स्वरुप एवं प्रतिरुप में समयानुसार परिवर्तन करता रहा है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में कृषि जहाँ अर्थव्यवस्था का प्रमुख आधार स्तम्भ है, वहीं आदिकाल से ही यहां पशुपालन का भी अत्यधिक महत्व रहा है। देश में आज भी अधिकांश छोटे जोत पशुओं की सहायता से ही जोते जाते हैं। देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भूमिहीन, छोटे तथा सीमांत कृषकों की आय बढाने में कृषि के साथ ही पशुपालन कार्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। पशुपालन उपनगरीय क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों, जनजातीय एवं बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में जहाँ परिवार के भरण पोषण के लिए कृषि पर्याप्त नही होती है, सहायक व्यवस्था प्रदान करता है। कृषि से न केवल मनुष्य फसलें प्राप्त करता है बल्कि पशुपालन व्यवसाय भी समानांतर संचालित करता है। प्रस्तुत शोध पत्र में सीकर जिले में वर्ष 1970 से 2010 के मध्य में कृषि भूमि उपयोग के स्वरूप में हुए परिवर्तनों का तुलनात्मक अध्ययन दर्शाया गया है जिससे जिले में कृषि विकास स्तर को आंका जा सकता है।