महिलाओं के मानवाधिकार एवं तीन तलाक-वस्तुस्थिति

Dr Ashok Kumar Sharma
सहायक आचार्य, राजनीति विज्ञान विभाग अतिथि शिक्षक (बिद्या संबल योजना) राजकीय महाविधालय बोराडा , केकड़ी Email- drashoksharma74@Gmail.Com, Mobile-9214638764
अथर्ववेद के इस श्लोक का हिन्दी रूपान्तर है कि जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात् सत्कार होता है, उस कुल में देवता निवास करते हैं, जहाँ पर ऐसा नहीं होता है वहां पर सभी कार्य निष्फल होते हैं । इस्लाम में भी शास्त्र, सांस्कृतिक परम्पराऐं और न्यायशास्त्र पुरुषों और महिलाओं के सम्बन्धों को प्रभावित करते हैं। कुरान की सूरः बकर (2ः228) में कहा गया है कि महिलाओं लिए भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं, जैसे मर्दों के अधिकार उन पर हैं। कुरान में महिला के महत्व और स्थान के बारे में कई एक छंद मौजूद हैं। औरत चाहे मां हो बहन हो, पत्नी हो या बेटी हो, इस्लाम ने उनमें से प्रत्येक के अधिकार व फराइज का विस्तार के साथ वर्णन किया है। इस्लामी धर्म ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि अल्लाह ने निर्माण के स्तर में महिला और पुरुष का बराबर का स्थान दिया है। मनुष्य होने के नाते महिला का वही स्थान है जो पुरुष को प्राप्त है। इस्लाम ने औरत को प्रशिक्षण दिया और नुपका का अधिकार दिया कि उसे रोटी. कपड़ा, मकान, शिक्षा और इलाज की सुरक्षा, वालियल अम्र की तरफ से मिलेगी । इस्लाम ने पुरूषों की तरह महिलाओं को भी स्वामित्व दिया है वे न केवल खुद कमा सकती है बल्कि विरासत के तहत प्राप्त होने वाली सम्पत्ति की मालिक भी बन सकती है। इस्लाम ने बेटी और बहन के रूप में भी उसके अधिकार बयान किये गए हैं। इन्हें भी विरासत का हकदार ठहराया है।

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